Saturday, July 18, 2015

प्रेम ऋतु



प्रेम जो विरह को छू आए, 
राधा यूँ मीरा हो जाए,
चंचल मन है चंचल 'साथी', 
सब जाने पर आग लगाए,

बरखा की इस प्रेम ऋतु में, 
सखिया मुझको खूब चिढ़ाए,
पिया मे जब भी ध्यान लगाऊं, 
अधरो में मुस्कान वो लाए,

यौवन सा एहसास प्रेम का,
मॅन प्रफ़्फुलित मुझको भटकाए,
आँसू में तुम, खुशियों मे तुम,
रूह भी तुझमे घुलती पाए,

आ जा संग नाचे बरखा में,
मोहित दिल ये आस लगाए,
ऐसे पिघले भीग भीग हम, 
दोनो दो से एक हो जाए, 

फूलो सा कोमल मेरा मॅन,
बस तुझको ही जपता जाए,
राधा तेरी, मीरा भी है,
तू ग्वाले सा हाथ ना आए || 

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