देश की भक्ति करते है, हम देश भक्त कहलाते है,
चुन लेते है काँटों को जो, तो पल पल हम कहराते है,
एक बूँद पसीने की अपनी, सोने चाँदी से प्यारी है,
जब गिरते है हम गड्ढे में, उसपर इल्ज़ाम लगाते है,
सब चाहे सूरज और तारे, जैसे आकाश हमारा हो,
जब चुनने की आए बारी, सब कब्र में ही सो जाते है,
धाराए अनेक है बहती सी, पर मिल ना पाते है हम तुम,
जो कहराते है दुख से हम, खुद की तब शान जताते है,
यह देश नही बस उनका है, हम भी रहते है 'ए-जालिम',
करने की जब बारी आए, दूजे को राम बताते है ||
No comments:
Post a Comment