रंगो कि धाराओं में बहता,
एक रंगहीन पत्ता सा हूँ,
विपरीत व्यवहारों को संजोये,
एक हृदय विहीन सत्ता सा हूँ,
नाशहीन रूह को बांधे,
एक विचारहीन शरीर हूँ,
संतोष कि कामना संजोये
एक स्वाभिमानी अधीर हूँ,
बरखा में हरसूँ भीगता,
एक बंजर जमीन का टुकड़ा हूँ,
हवाओं के संग लहराता,
सूरज का जलता सा मुखड़ा हूँ,
कहते है सब बार-बार,
असंतुष्टि का हिस्सा हूँ,
संतुष्ट हूँ इससे ही मैं ,
आखिर कोई तो किस्सा हूँ.
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