छूकर गुज़री सर्द लहर जो तुझको आज,
सिरहन सी प्रतीत हुई यहाँ मुझको आज,
कोई बोला ये नाता है जन्मो जन्म का,
परंतु कोई ना समझ पाया उसको आज,
असमंजस में है मानव, दुर्भाग्य देख रहा,
खुशियाँ छीनकर पाता है बस दुख को आज,
समझ के परे एक समझ बलवती सी है,
ना कर पाएगा खुश वो नादान, सबको आज,
अंधकार में डूबी है समस्त पृथ्वी साथी,
कौन जगाना चाहे यहाँ, अब खुद को आज || DV ||
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