ज़िंदगी जीना जो सीखा था,
कदमो को तेरे बनाकर अपना,
आईने में तुझको ही देखा था,
तू मेरा सच था और तू ही था सपना,
कुछ घुली थी तू सांसो में,
की कहाँ तुझमे और मुझमें कोई अंतर था,
मैं तो था केवल एक बूँद,
तू ही तो मेरा अनंत समंदर था,
फिर क्यूँ मेरे चाँद ने,
मेरे आसमान में अमावस्या की रात बनाई,
एक पल में अपने प्रेम के सागर को,
कतरा कतरा खूनी आंसूओ की सौगात बनाई
किस खता ने मेरी "ए जालिम",
मुझे यह गम में डूबी बारात दिलाई,
इबादत में क्या कमी रह गयी थी,
जो मेरे खुदा ने ही मुझे जीते जी ऐसी मौत दिलाई,
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