कौन है लौह पुरुष यहाँ,
कहाँ है देवी सती,
कुपित शब्दों की शब्दावली से,
अब रसती है - पल पल क्षती,
हृदय मलिन एवं शीण,
क्रोधाग्नि में घुलती छाया,
क्रोधाग्नि में घुलती छाया,
स्तब्ध आवश्यकताए बेबस,
द्वेष की अग्नि-वर्षा अनंत,
ग्लानी के वृक्षों को सींचे,
सिमटे आकाश का ध्यान,
खूनी चेतना, अपनी ओर खींचे,
एकाकीपन की इच्छा बलवती,
ज़हरीली सम्भावनाए समक्ष,
आत्मविश्वाश का ताण्डवीय अंत,
आत्मा भी अब चुने विपक्ष
कहाँ है राम , कहाँ है अर्जुन,
कहाँ है मुरली मनोहर श्याम की धरती,
गर होते वो आज ,
एहसासों की दर्दनाक मौत यहाँ - हर एक माँ ना मरती
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