हर एक पल की तृष्णा ,
जीवन को कुंठित करे है,
हर एक पल की घृणा,
साँसों को दूषित करे है.
हर एक जुल्म का साया,
मन को व्याकुल करे है,
हर एक पाखंडी छाया,
हृदय को काबुल करे है.
विश्वाश का जन्म अविश्वसनीय,
अतीत भविष्य सा प्रतीत होवे है,
क्या यही है सच्चाई का नगर,
जहा इनाम भी सज़ा सी व्यतीत होवे है.
हिम्मत की बलि चढ़ाई,
अब तो आंसू भी हँसी रोके है,
बेबसी की व्यथा किसे सुनाये,
आत्मीयता भी परायेपन की आग में झोके है.
परन्तु इस अंधेरे में,
एक किरण प्रज्ज्वल है,
दरिद्न्दगी की सुलभता में,
एक दुर्लभ सज्जनता उज्वल है.
बेबसी की बलि चढाने हेतु,
एक शक्ति विराजमान है,
भक्ति में लीन भक्तो को संजोये,
रोशन धरती के तले वो अंतर्धान है.
विश्वाश का इम्तिहान लेते,
परम विश्वश्नियता बरकरार है,
धर्मं उठ खड़ा है,
हर एक खंड बेकरार है.
दुर्जनता का अंत निश्चित,
समय की यही ललकार है,
सज्जनता की नीव प्रबल,
भगवन के प्रलय की प्रचंडता का यह प्रमाण है.
रचेयता - दिवाकर पोखरियाल
जीवन को कुंठित करे है,
हर एक पल की घृणा,
साँसों को दूषित करे है.
हर एक जुल्म का साया,
मन को व्याकुल करे है,
हर एक पाखंडी छाया,
हृदय को काबुल करे है.
विश्वाश का जन्म अविश्वसनीय,
अतीत भविष्य सा प्रतीत होवे है,
क्या यही है सच्चाई का नगर,
जहा इनाम भी सज़ा सी व्यतीत होवे है.
हिम्मत की बलि चढ़ाई,
अब तो आंसू भी हँसी रोके है,
बेबसी की व्यथा किसे सुनाये,
आत्मीयता भी परायेपन की आग में झोके है.
परन्तु इस अंधेरे में,
एक किरण प्रज्ज्वल है,
दरिद्न्दगी की सुलभता में,
एक दुर्लभ सज्जनता उज्वल है.
बेबसी की बलि चढाने हेतु,
एक शक्ति विराजमान है,
भक्ति में लीन भक्तो को संजोये,
रोशन धरती के तले वो अंतर्धान है.
विश्वाश का इम्तिहान लेते,
परम विश्वश्नियता बरकरार है,
धर्मं उठ खड़ा है,
हर एक खंड बेकरार है.
दुर्जनता का अंत निश्चित,
समय की यही ललकार है,
सज्जनता की नीव प्रबल,
भगवन के प्रलय की प्रचंडता का यह प्रमाण है.
रचेयता - दिवाकर पोखरियाल
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